
🌟 “राजमा-चावल में छुपे सपने: मां सरिता कश्यप की संघर्ष और आत्मनिर्भरता की कहानी”
दिल्ली की भागदौड़ भरी सड़कों पर एक स्कूटी सवार महिला रोज़ाना निकलती हैं — पीछे एक छोटा सा खाना स्टॉल बंधा होता है। देखने में ये बस एक और स्ट्रीट फूड वेंडर लग सकती हैं, लेकिन अगर आप इनके बनाए राजमा-चावल का स्वाद चखें और इनकी कहानी सुनें — तो आप समझेंगे कि यह सिर्फ एक खाना नहीं, बल्कि एक मां का सपना है जो रोज़ पकता है, परोसा जाता है और धीरे-धीरे मुकम्मल होता है।
👩👧 मां नहीं, मिशन हैं — सरिता कश्यप
सरिता कश्यप की ज़िंदगी एक साधारण महिला की नहीं, बल्कि असाधारण हिम्मत की मिसाल है। एक टूटी हुई शादी, अकेली बेटी की परवरिश, समाज की बातें और आर्थिक तंगी — ये सब एक आम इंसान को तोड़ सकते हैं। लेकिन सरिता को नहीं।
जब हर दरवाज़ा बंद हुआ, तब उन्होंने खुद एक दरवाज़ा खोला — स्कूटी को किचन बना दिया और राजमा-चावल का छोटा स्टॉल शुरू किया। लोगों ने मज़ाक उड़ाया, लेकिन सरिता जानती थीं कि ये हंसी एक दिन ताली बन जाएगी।
🛵 जब स्कूटी बना आत्मनिर्भरता का सिंबल
स्कूटी पर लगे टिफिन बॉक्स में सिर्फ खाना नहीं था, वो मेहनत, उम्मीद और ममता से भरा होता था। स्कूल की फीस हो या बेटी का सपना — हर दाने के पीछे सरिता की ममता और हिम्मत का स्वाद था।
“लोग मेरी स्कूटी पर खाना देखकर हँसते थे, लेकिन जब मेरी बेटी की स्कूल की फीस मैंने खुद भरी — वो हँसी मेरी जीत बन गई।” — सरिता कश्यप
🍽️ इंसानियत का जायका
इस कहानी को सिर्फ आर्थिक आत्मनिर्भरता तक सीमित करना गलत होगा। सरिता के दिल में सेवा का भाव भी उतना ही बड़ा है। अगर कोई भूखा आ जाए और पैसे न हों, तो भी उन्हें खाना मिल जाता है।
“अगर मेरे पास दो रोटियाँ हैं, तो एक उस भूखे के लिए है।”
इस जज़्बे ने उन्हें सिर्फ एक फूड वेंडर नहीं, बल्कि इंसानियत का उदाहरण बना दिया है।
📚 शिक्षा से रोशनी फैलाना
सरिता सिर्फ पेट ही नहीं भरतीं, वो भविष्य भी सँवारती हैं। जो भी समय मिलता है, उसमें वे गरीब बच्चों को पढ़ाती हैं। उनका मानना है:
“शिक्षा ही वो हथियार है, जिससे एक बच्चा अपनी किस्मत खुद लिख सकता है।”
आज जब हम रोल मॉडल ढूंढते हैं — तो हमें स्क्रीन या मंच पर देखने की ज़रूरत नहीं है। असली हीरो हमारे आस-पास ही होते हैं — जैसे मां सरिता कश्यप।