
दिव्या ओझा: एक पहचान, एक प्रेरणा – संघर्ष से सम्मान तक का सफर
बिहार के गोपालगंज ज़िले की रहने वाली ट्रांसजेंडर दिव्या ओझा ने वो कर दिखाया जो समाज ने कभी मुमकिन नहीं माना। बिहार सिपाही भर्ती परीक्षा 2024 में सफलता प्राप्त कर उन्होंने ना केवल अपनी ज़िंदगी की दिशा बदली, बल्कि पूरे ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए उम्मीद की एक नयी रोशनी भी जलाई।
सपनों की राह में काँटे ही काँटे थे
दिव्या का बचपन आम बच्चों जैसा नहीं था। पहचान के लिए उन्हें हर पल संघर्ष करना पड़ा। जब वो सड़कों पर चलती थीं, तो लोग तंज कसते — “देखो, छक्का जा रहा है।” इन शब्दों ने उन्हें अंदर तक तोड़ा, लेकिन उन्होंने खुद को टूटने नहीं दिया। उन जलील करने वाले शब्दों को उन्होंने अपनी ताक़त बना लिया।
परिवार और समाज से मिली बेरुख़ी
हर किसी को उम्मीद होती है कि परिवार उसका सबसे बड़ा सहारा बनेगा। लेकिन दिव्या को अपने ही घर और समाज से उपेक्षा झेलनी पड़ी। एक तरफ मानसिक पीड़ा थी, दूसरी तरफ आर्थिक तंगी। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। खुद को पढ़ाई में झोंक दिया, दिन-रात मेहनत की और इस जद्दोजहद में खुद को तराशती रहीं।
“मैं सोच बदलना चाहती थी…”
दिव्या कहती हैं –
“लोग ट्रांसजेंडर्स को भीख मांगने या देह व्यापार से जोड़ते हैं। मैं यह सोच बदलना चाहती थी। मुझे खुद को साबित करना था — और आज मेरी मेहनत रंग लाई है।”
सिर्फ नौकरी नहीं, बदलाव की शुरुआत
बिहार सिपाही परीक्षा में सफलता उनके लिए सिर्फ एक नौकरी का मतलब नहीं रखती। यह समाज की सोच को आईना दिखाने वाली जीत है। एक ऐसा जवाब, जो उन सभी लोगों के लिए था जो उन्हें कमज़ोर समझते थे। दिव्या ने साबित कर दिया कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी बंदिश आपके सपनों की उड़ान को नहीं रोक सकती।
समाज को बदलना होगा नजरिया
दिव्या की यह उपलब्धि सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं है, बल्कि एक पूरे समुदाय की आवाज़ है। हमें ट्रांसजेंडर लोगों को तानों या रहम की नजर से नहीं, बल्कि सम्मान और बराबरी की दृष्टि से देखना होगा। उन्हें भी वही अधिकार मिलने चाहिए जो किसी आम नागरिक को हैं — सपने देखने के, उन्हें जीने के, और इज्ज़त से जीने के।
दिव्या ओझा की यह कहानी सिर्फ प्रेरणा नहीं, एक परिवर्तन की शुरुआत है। क्या हम इस बदलाव का हिस्सा बनेंगे?